प्रकृति ने इंसान को इस प्रकार बनाया है कि वह परिवर्तनों के हिसाब से खुद को ढालने में सक्षम होता है । इन परिवर्तनों में दिनचर्या, उम्र तथा अन्य स्थितियां शामिल है , लेकिन ये परिवर्तन तब तक शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते जब तक मनुष्य की दिनचर्या और आचरण नियमित होता है।
नियमित व निश्चित जीवनचर्या निरोगी और सुदीर्घ जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। इसके साथ ही मानव द्वारा बनाई गई कुछ परमपराएं तथा पारम्परिक वस्तुएं भी स्वास्थ से जुड़ी होती है जिनके बारे में अक्सर लोगों को ज्ञान नहीं होता है। नियमित दिनचर्या के साथ यदि इन पारम्परिक बातों के सार को भी गृहण किया जाए तो जीवन दीर्घ व स्वस्थ बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
हमारी जो भारतीय संस्कृति है वह अत्यंत प्राचीन पद्धति है इसमें कई परमपराएं हम पिढी दर पिढी अपनाते आ रहे हैं उनमें मुख्य है जैसे...छेदन करवाना,जनेऊ धारण करना, गहने पहनना,ताली बजाना एवं अन्य कई यह कहीं न कहीं चिकित्सा से जुड़ी है जो हमें नैसर्गिक रूप से स्वस्थ रहने में मदद करती है।
हमारे देश में प्रत्येक प्रदेश की स्रिया कान,नाक में छेदन प्रक्रिया करवाती है,यह पुरुष भी करवाते हैं, बच्चों के जन्म के पश्चात कर्णछेदन , किया जाता है इसका संबंध चिकित्सा एवं स्वास्थ्य से है यह चिकित्सा एक्युप्रेशर व एक्युपंचर कहलाती है जहां पर भी छेदन प्रक्रिया कि जाती है वहां बहुत ही महत्वपूर्ण एक्यु पांईट होता है जिसके छेदन प्रक्रिया से कई प्रकार की बिमारियों से दूर रहा जा सकता है।
जितने भी आभुषण पहने जाते है| हाथों व पांवों में वहां बहुत महत्वपूर्ण बिंदु होते है संबंध हमारे शरीर के किसी ना किसी संस्थान के अवयव से जुड़ा होता है।
- जैसे, कलाई में कड़े, बाजूबंद,कानों में बालियां या कर्णफूल,कमर में करधनी या तगड़ी,माथे पर टीका या बोर, अंगुलियों में अंगुठिया, पांवों में बिछीया,पायल कोहनी की कड़ी, अंगुठे में अंगुष्ठा यह जेवर जहां जहां पहने जाते है पुरे शरीर वहां हर जगह एक महत्वपूर्ण एक्यु प्रेशर पांइट है उनके दबने से कई प्रकार बिमारियों से दूर रहा जा सकता है एवं स्वास्थ्य से संबंधित दर्द से राहत मिलती है।
- हम हाथों व पांवों में कई जगह धागें बंधे होते है उसके पिछे महज अंधविश्वास या आस्था नहीं है वहां पर एक एक्यु प्रेशर पांइट है जिसके दबने मात्र से हम स्वस्थ रह सकते है।
- जैसे हाथों की कलाई ,बाजू व अंगुठे पर धागा बांधा जाता है वहां का एक्यु पांईट दबने से बी.पी., एसिडिटी,नौशियां,चक्कर, सिरदर्द, मिलती आना, घबराहट आदि समस्या का समाधान होता हैI
- नाभी अगर अपनी जगह से टल जाये या सरक जाये तब के तरह की समस्याएं पैदा हो जाती है इस में महज दोनों पांव के अंगूठे में धागा बांधने मात्र से आराम मिलता है यहां भी एक्यू पांइट होता है जिस पर दबाव पड़ता है।बाजू पर धागा बांधने से श्वसन प्रणाली से संबंधित तकलीफ में आराम मिलता है।
- कर्ण छेदन यह बहुत ही प्राचीन परंपरा है जो अभी भी कई घरों में अपनायी जाती है जन्म के बाद बालक के १३वें व बालिका के १२वें दिन जो कर्ण छेदन संस्कार होता है वहां एक एक्यु पांईट होता है जिसे दिव्यछिद्र के नाम से जानते है यह शारीरिक, मानसिक विकास बौद्धिक बच्चों के पुर्ण सर्वांगीण विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। आज भी अनेक प्रदेश में स्रीयों के साथ पुरुष भी कान के ऊपर अलग-अलग जगह छेद करवाते हैं| कान में सभी जगह अंगों के संस्थान के अवयव के पांइट विद्यमान होते है।
- ताली बजाना: मंदिरों में आरती के समय, खुशी के मौके पर या स्वागत में आनंदित हो कर हम दोनों हाथों से ताली बजाते हैं यह सिर्फ एक काम नहीं है एक उपचार है जो नैसर्गिक रूप से हमें स्वस्थ रखता है क्योंकि हमारे शरीर के आंतरिक व बाह्य अवयव दोनों के पांइट समान रूप से दोनों हाथों में होते हैं। एक रिदम में ताली बजाते हैं तब उन पर जो दबाव पड़ता है वह लय व एक निश्चित दबाव होता है जिससे पांइट समान रूप से दबते हैं हम अनायास ही हमारे शरीर का उपचार कर लेते हैं।
- ब्राम्हण कुल में जनेऊ धारण करना प्रचलित है यह धार्मिक प्रक्रिया के साथ-साथ नैसर्गिक चिकित्सा भी है देखे कैसे जब विधी विधान के साथ होम हवन, गायत्री मंत्र बोलते हुए सुर्य के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर जनेऊ पहनी जाती है तो यह जगह -जगह घर्षण के साथ महत्वपूर्ण पांइट दबते हैं और चिकित्सा होती है।यह एक पूर्ण वैज्ञानिक तरीका है जो हमें कइ तरह की बिमारियों व समस्याओं से दूर रखता है व गायत्री मंत्र की शक्ति से आत्म विश्वास भी बढ़ता है।
यह आस्था, आध्यात्म और भगवान पर विश्वास के साथ पूर्ण सैध्दान्तिक है ।
हमारा असली धन हमारा स्वास्थ है आयें नैसर्गिक रूप से चिकित्सा अपनाकर सभी निरोगी काया की ओर बढ़ाएं कदम क़दम, आप और हम |
(प्राकृतिक चिकित्सक: वृंदा खांडवे -SBPASS INDORE)
Help Vote
(3)
Comments
(0)
Disclaimer: The health journeys, blogs, videos and all other content on Wellcure is for educational purposes only and is not to be considered a ‘medical advice’ ‘prescription’ or a ‘cure’ for diseases. Any specific changes by users, in medication, food & lifestyle, must be done under the guidance of licensed health practitioners. The views expressed by the users are their personal views and Wellcure claims no responsibility for them.